The Boat Clinics on Loksabha TV
https://www.youtube.com/watch?v=ILa_H9784K8
उभरता पूर्वोत्तर/लहरों पर तैरता अस्पताल असम के कुल भूखंड में से करीब 6 फीसद हिस्सा नदी द्वीप क्षेत्र है। जहां असम की कुल जनसंख्या में से करीब 10 फीसद आबादी रहती है। यानी करीब 30 लाख लोग इन द्वीप गांवों में रहते हैं। असम में 13 जिले नदियों के किनारे स्थित हैं। ब्रह्मपुत्र नदी अपने उद्गम स्थान तिब्बत से होती हुई बंगाल की खाड़ी तक की अपनी लंबी यात्रा के दौरान असम में करीब 900 किलोमीटर क्षेत्र में बहती है। यह क्षेत्र अपर असम के सदिया से बांग्लादेश सीमा तक यानी धुबरी जिले तक का है। ब्रह्मपुत्र नदी पर करीब 2,500 छोटे-बड़े द्वीप गांव हैं जो राज्य के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक हैं। यहां स्थानीय भाषा में द्वीप को सॉर या सापोरी कहते हैं। ज्यादातर द्वीप हर साल मानसून में बनते और बिगड़ते हैं। एक द्वीप विलीन होता है तो दूसरा उग आता है। मुख्यधारा से कटे नदी द्वीप क्षेत्रों के लाखों-लाख लोगों तक बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के बारे में सबसे पहले एक आम व्यक्ति ने सोचा। नदी द्वीप क्षेत्र की यात्रा के दौरान एक पत्रकार और लेखक के सामने एक दिन कुछ ऐसा घटा कि उन्होंने फ्लोटिंग बोट क्लिनिक की परिकल्पना कर डाली। उन्होंने प्रयोगशालाओं और फार्मेसियों से लैस नाव डिजाइन कर उसका निर्माण कराया। जिसके बाद नौका अस्पताल कार्यक्रम शुरू करने का रास्ता साफ हो गया। सेंटर फार नार्थ इस्ट स्टडीज एंड पॉलिसी रिसर्च संस्था यानी सी-एनईएस के बैनर तले पहले बोट क्लिनिक ने डिब्रूगढ़ में मई 2005 से काम शुरू किया। शुरुआत में सी-एनईएस के पास सीमित संसाधन थे, इसलिए काम करना थोड़ा मुश्किल रहा है। लेकिन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और असम सरकार के सहयोग से बोट क्लीनिक का विस्तार किया गया। मौजूदा समय में राज्य के 13 जिलों में कुल 15 बोट क्लीनिक काम कर रहे हैं। ये जिले डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, धेमाजी, जोरहाट, लखीमपुर, सोनितपुर, मोरीगांव, कामरूप, नलबाड़ी, बोगाईंगांव, बरपेटा, ग्वालपाड़ा और धुबरी हैं। वहीं, बरपेटा और धुबरी जिलें में आबादी ज्यादा होने के कारण दो-दो नाव क्लीनिक हैं। बोट क्लिनिकों को हर साल 93 फीसद वित्तीय मदद राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत मिलती है। प्रत्येक बोट क्लिनिक पर सालाना 52 लाख रुपए खर्च किए जाते हैं। भारत सरकार और असम सरकार वैक्सीन, दवाएं आदि भी उपलब्ध कराती हैं। इसके अलावा कई संस्थाएं भी हैं जो बोट क्लिनिक को सहयोग देती रही हैं। शुरुआत से मार्च 2017 तक बोट क्लीनिक, करीब 22 लाख लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करा चुका है। बोट क्लिनिक कार्यक्रम को जमीनी स्तर पर सफल बनाने में आशा और सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मचारी की भूमिका काफी अहम होती है। जनजातीय लोग संकोची प्रवृत्ति के होते हैं। वहीं, भाषायी दिक्कतें भी बेहतर संवाद में बाधक बनती हैं। ऐसे में सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मचारी और आशाएं एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।